बिल्ली विश्वविद्यालय (9)

यूँ ही ब्रश उठा कर 
पहाडों को पीला रंग दूँ
गेरूआ रंग दूँ घाँस को और
आसमान सुनहरा कर दूँ।
पैरों तले रख दूँ आँधियाँ 
या समुंदर को छत कर लूँ।
बालों में फूलों कि तरह 
चाँद और सूरज लगा लूँ
या फिर दोपहर का 
आँचल सितारों से भर दूँ।

जब कुदरत कर सकती है 
झब्बू की एक आँख नीली
और दूसरी सुनहरी,तो
मेरी कल्पनाओं को 
जाने किस हकीकत 
की रस्सी जकड़े है!
                 
स्वाती

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