बिल्ली विश्वविद्यालय  (1)

कितनी देर देख रही हूँ…

वो बैठी है समाधिस्थ

बंद आँखों से देखती।

होती है कहीं कोई

हल्की सी हलचल ,

कभी कोई अदृश्य

सरसराहट..

कान एक नाजूक

सा इशारा करते हैं

उस ओर,

बताने के लिए

कि वो पूरी तरह सतर्क है

हर पल, हर क्षण।

किसी निपुण योग गुरू सी

वो सोई भी नहीं है

खयालों में खोई भी नहीं है

बस योगनिद्रा में है।

वो  मौजूद है भी इस क्षण में

और नहीं भी है।

बस देखते रहिए उसकी तरफ

अपने आप मिलते रहेंगे सबक

एक पल भी ज़ाया  नहीं है

बिल्ली की सोहबत में।

              स्वाती

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