झबरीले

सोफे पे, गद्दे पर, 
कुर्सी के ऊपर और 
टेबल के नीचे
कपड़ों पे चिपके और
पर्दों से लटके, 
प्याजों की डलिया में
गमलों में, बगिया में
हर लम्हा झड़ते
हवाओं में उड़ते
घर के हर कोने में
बाल पड़े हैं।
मुश्किल हटाना है
दुनियांँ भर के झाडू
कोशिशें कर कर के
थक कर पड़े हैं।
और उन बालों के 
जितनी ही
यादें भी फैली हैं
घर भर  में जैसे
खुशबू बसी सी हैं।
उतना ही मुश्किल है
उनका  भी जाना 
हमारे दिलों से कि 
हमारे ये झबरे, 
चार पांव वाले बच्चे ,
जो एक बार आ जाएं 
तो फिर रह जाते हैं
हमेशा के लिए।
फिर वो पास हों,ना हो
दिल में ही रहते हैं
और हर याद ले आती है
एक मुस्कान चेहरों पे।
        
             स्वाती

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