यहीं कहीं एक नन्हाँ मुन्ना
उनींदा सा सपना
जाग हक़ीक़त बनने को
बेताब खड़ा है।
कलम मुन्तज़िर है कि
कोई उँगलियाँ उसे उठाएँ।
कागजों के ढेर में छिपी
एक कहानी इंतज़ार में
कब उसकी बारी आए।
रंगों, ब्रशों को तकता कॅनवास
उम्मीदों से सिहर रहा,
कि शक्ल ले रहा है एक
खयाल धीरे धीरे ज़हन में।
रंगीन चिंधियाँ कपड़ों की,
एक दुलाई की शक्ल में
कब की ढल चुकी हैं
मेरे मन में।
कॅमेरे उत्सुक हैं
देखने को दुनियाँ,
किंडल, आय पैड आतुर हैं
साझा करने को कहानियाँ।
और भी जो कुछ अगड़म बगड़म
फैला हुआ नजर आता है,
लगे किसी को उलझन
लेकिन हमें बहुत भाता है।
ये जो हमारे घर में यहाँ से वहाँ तक
बिखरा सब समान पड़ा है
वो कचरा नहीं,ना कबाड़
ना अटाला है।
वो बीज हैं कल्पनाओं के,
इरादे हैं, योजनाएँ हैं
और कोई कच्चा पक्का ख़याल है
जो जल्द ही हक़ीक़त बनने वाला है।
स्वाती
Very nice 👍
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Very appropriate title
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Can soooo relate to this 😀
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