तीस साल बाद..

झरने की तरह उसके लब से 
यूं लफ़्ज़ धबाधब झरते हैं।
उसके अल्फाज़ों के रेले
मन को आंदोलित करते हैं।

जाने कैसे इतनी जल्दी वो
इतना सब सोच भी लेता है
उसके एहसासों का  बादल 
शब्दों को खोज भी लेता है

उसकी बातें हैं आग कभी
उसकी बातें हैं पानी भी
अक्सर तो तीर सी लगती हैं
और कभी कभी बेमानी भी।

उसके हाथों के चाकू जितनी ही
धार  उसकी ज़बान में है।
उस जैसा अजूबा वो ही है
उस जैसा वो ही जहान में है।

कितना चाहूं सब चुन लूं मगर
बूंदें कुछ छलक ही जाती हैं।
इतनी कोशिश करने पर भी
कितनी बातें खो जाती हैं।

नज़रों से आगे देखता है
उसके दिमाग का पैनापन,
हर बात की उसको जल्दी है
हर समय चुनौती चाहे मन।

जब तक सबको उसकी बातों का
सार समझ में आता है,
तब तक तो वो काम खतम कर 
आगे भी बढ़ जाता है।

सालों से उससे वाक़िफ हूँ
पर अब भी दिल ये कहता है,
क्या कमाल बंदा है वो,
जो शख़्स मेरे घर रहता है।

             स्वाती

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