क्या क्या मैं कहाँ रख लूँ..

सीने की अतरदानी में
जंगल की महक रख लूँ
गीली सी हवा रख लूँ
अलसाई किरन रख लूँ
झरनों के गीतों को
झुमकों की तरह पहनूं
कानों में झीलों की
अल्हड़ सी खनक रख लूँ
पलकों में छुपा लूं मैं
इस धुंध की तस्वीरें
कोहरे की जुल्फों को
सुलझाती किरन रख लूँ।
फिर लौट के खोना है
उसी शहर में लोगों के
फिर भीड़ में जीने की
कोई तो वजह रख लूँ।

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