कभी उस ‘उस’ से मिलना तुम





 
वो उसका जुल्फें सँवारने का ढंग 
वो उसके खूबसूरत पैराहन का रंग 

वो उसकी पेशानी पर पड़ी हल्की सी सलवट 
वो उसकी बेबात मुस्कुराने की आदत 

वो उसकी शक्ल ओ सूरत और अदाएं 
वो ऐसी भी है लेकिन क्या बताएं 

तुम्हें  भी तो वो अक्सर  मिलती ही होगी 
ज़रा सी बेतक़ल्लुफ बात भी करती ही होगी

मगर जो फुर्सत हो किसी दिन यूँ भी करना तुम 
जो उसके ज़हन में रहती है उस 'उस’ से मिलना तुम

वो तो एक नदी सी है जो हर पल बहती रहती है 
उसके साहिलों पर सीपियों सी ढेरों कहानियाँ रहती हैं

कभी मन हो तो दे देना उसे अपनी कहानी भी
बहुत ठहराव  है उसमें ,साथ ही है रवानी भी

उसमें खुश्बू किताबों की, वो है लफ्जों की दीवानी
कभी मौजों से पूछेगा कोई उसकी भी कहानी।

स्वाती

                                         
                               




3 thoughts on “कभी उस ‘उस’ से मिलना तुम

Add yours

Leave a reply to Anonymous Cancel reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Website Built with WordPress.com.

Up ↑