प्राणवायु


उनकी तारीफों के पुल बांध रही है दुनिया

उनका संघर्ष, परिश्रम,सफलता सब कुछ

काबिले तारीफ,एक मिसाल,शानदार !

अपने भाषण के अंत में दुनियाभर के

आभार मान कर,बड़ी सह्रदयता से

उसे अच्छा लगे,बस इसलिये

वो जोड़ देते हैं कभी कभी ये भी,

कि उनके इस सफर में

उसने भी अच्छा साथ निभाया।

 
हाशिए पर खड़ी वो, अब याद भी नहीं करती

उन दिनों को, जब उसकी हिम्मत के भरोसे

उन्होने हिम्मत की थी उड़ने की

और उसकी उस टटपूंजी नौकरी को जिसकी

बदौलत चलता था आठ लोगों का घर तब,

और उस मेहनत को जो घर और बाहर

उसने अकेले ने की, ताकि वो रह सकें निश्चिंत।

कितनी सहजता से छोड़ आई वो उस काम को

जिससे उसका अस्तित्व था, तब

जब उसका वक्त था ऊँचाईंयाँ नापने का,

कि अब उसकी कमाई की जरूरत नहीं।

वो तो सिर्फ साथ निभा रही थी।

 
ज़रूर लिखी जाएगी उनकी विजय़ गाथा।

और इस कथा के नायक सिर्फ वो होंगे।

कभी नहीं कहेंगे वो, कि वो साझीदार है

बराबर की, उनके जीवन संघर्ष में।

बराबर का हिस्सा है उसकी बुध्दिमत्ता,

व्यहारिकता और सहृदयता का उनकी

बेदारियों,परेशानियों और उपलब्धियों में।

क्योंकि उन्हें पता ही नहीं चला कभी।

अदृष्य ही रहा उसका अस्तित्व हमेशा।

वो तो बस रही, यहाँ-वहाँ हवा की तरह।


बस इतना ही समझ नहीं पाते वो,

कि क्यों मुश्किल हो जाता है साँस लेना

सारे घर को अगर वो ना रहे आसपास।
 
 
 
 

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