सविनय अनुरोध

किसी ने कहा

“तुम्हें देख कर लगता ही नहीं

कि तुम इतने बड़े बड़े लड़कों की माँ हो।”

इसे मैं अपनी तारीफ समझूँ या अपमान?

औरतों की उम्र नहीं पूछनी चाहिए।

क्यों भला? क्या ये भी मासिक की तरह

कोई लज्जास्पद विषय है कि चाहे वो

हर महीने झेलना पड़े पर उसकी

खुलेआम चर्चा नहीं होनी चाहिए?

लगता नहीं कि तुम पचास के करीब हो..

बस तीस-पैंतिस से अधिक नहीं लगती।

माफ कीजिए, लेकिन मेरी

पचास साला ज़िंदगी का

कोई एक साल भी इतना बेमानी

तो हरगिज़ नहीं था कि, उसके

अस्तित्व को ही नकार दिया जाए।

याद करने बैठूं तो कोई ऐसा साल

नहीं दिखता कि, जिसने मुझे

कुछ ना कुछ, ना दिया हो।

अच्छा या बुरा चाहे जैसा हो,

ऐसा कोई पल नहीं जिसने मुझे

थोड़ा और समृद्ध ना किया हो।

हर एक साल की कीमत

अदा की है मैने पूरी पूरी,

ऐसे कैसे मैं कुछ सालों का

हिसाब चूक जाने दूँ।

बेटे पैदा हुए थे, तो बड़े भी हो ही जाते,

लेकिन तब से लेकर आज तक,

यकीन मानिए

हर घड़ी, एक माँ होने के नाते,

अपनी तऱफ से, अपनी तरह से।

बहुत मेहनत की है मैनें ।

अपने बड़े बड़े बच्चों को

मैं बड़े गर्व से देखती हुँ।

तो मैं इन बड़े-बड़े लड़कों की माँ

क्यों ना दिखूँ, कि मैं भी तो

बड़ी हो रही हूँ उनके साथ।

इस बड़प्पन में लघुता कहाँ है?

लेकिन यदि किसी वजह से

आप मेरी तारीफ करना ही चाहते हैं,

तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है।

बस एक सविनय अनुरोध है।

मुझे छोटा करने की बजाय

यूँ कहिए कि,

जीवन की इतनी आपाधापी

उतार-चढावों में भी तुमने

अपने बाल बच्चों घर-बाहर

और दुनिया भर के मसलों के साथ साथ

खुद को भी बहुत बढिया संभाला है तुमने।

यही बात तो काबिल-ए- तारीफ है।

है ना !!


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