बाप रे बाप…१८

 

भाटिया अंकल और पप्पा की बड़ी गहरी दोस्ती थी। दोनों हमेशा साथ-साथ ही रहते थे। भाटिया अंकल का परिवार मुंबई में था।

एक बार दोनों ने तय किया कि मुंबई जा कर देवानंद से मिला कर आएँ।

मंगाराम बिस्किट कंपनी की फॅक्ट्री ग्वालियर में थी। उसका मालिक इनका दोस्त था।

उसका एक ट्रक बिस्किट की डिलीवरी के लिये मुंबई जा रहा था।

एक तो फ्री की सवारी और वह भी ट्रक में, दोनो तुरंत चल पड़े।

इंदौर पहुँच कर कुछ देर रुके। निकलने से पहले ड्रायवर ने अफीम की एक बड़ी सी गोली मुहँ में रख ली।

पप्पा और भाटिया दोनों सामने की सीट पर ही बैठे थे।

ठंड के दिन थे, पप्पा ने अपना एक लाल रँग का कंबल लपेट रखा था। कुछ देर में ही पप्पा को झपकी आने लगी।

ड्रायवर बोला "साहब आप जागते रहो। आप सोने लगोगे तो मुझे भी नींद आ जाएगी।"

लेकिन उस दिन पप्पा को जबरदस्त नींद आ रही थी। चाह कर भी आँखें नहीं खोल पा रहे थे।

ड्रायवर बार-बार ताकीद दे रहा था, कि यदि उसे भी नींद आ गई तो सबकी जान जाएगी।

फिर कुछ देर के लिए उसने ट्रक रोका और पहिये में कुछ जाँचने लगा।

पप्पा की नींद काबू में ही नहीं आ रही थी। उन्होंने सोचा ट्रक के ऊपर चढ़ कर देखें, कि सोने के लिये कोई जगह है क्या ।

वे पीछे से ट्रक के ऊपर चढ़ गये। पूरा ट्रक बिस्किट के बक्सों से भरा था। बक्से आपस में रस्सी से बंधे थे। सोने के लिये बिल्कुल थोड़ी सी भी जगह नहीं थी।

उतनी देर में ड्रायवर वापस आ कर ट्रक में बैठा और उसने ट्रक चालू कर दिया।

पप्पा ने उपर से और भाटिया अंकल ने नीचे से शोर मचाना शुरू किया। लेकिन वह तो अफीम की तारी में था। उसने कुछ भी सुनने से इंकार कर दिया।

पप्पा ने बहुत हल्ला-गुल्ला मचाया, फिर थक कर वहीं बैठ गये।

उस अवस्था में भी उन्हें नींद आने लगी। भयानक ठंड थी।

उन्होंने अपना कंबल लपेटा और खुद को रस्सियों में फंसा लिया, और उसी हालत में उन्हें गहरी नींद आ गई।

पप्पा का कहना है कि उस दिन उन्होंने किसी भी प्रकार का नशा नहीं किया था, फिर भी पलकें खुल नहीं रही थीं।

ट्रक नाशिक जा कर ही रुका।

पप्पा ने उतर कर ड्रायवर से इस बर्ताव का कारण पूछा ,तो वह बोला कि उसे पता ही नहीं चला कि वे ऊपर हैं।

आखिर मुंबई पहुँचे। दो तीन दिन वहाँ घूमें फिरे।

देवआनंद की झलक भी नहीं दिखी।

भाटिया अंकल अपने परिवार के साथ कुछ दिन रहना चाहते थे। पप्पा फिर उसी ट्रक से वापिस निकल पड़े।

रास्ते में उसे एक और पहचान का ट्रक वाला मिल गया, और दोनों ट्रक ड्रायवरों के बीच रेस शुरू  हो गई।

जो ट्रक आगे निकलता उसके ड्रायवर-क्लीनर खूब शोर मचा कर दूसरे को चिढ़ाते।

नाशिक के पास किसी गाँव में दूसरा ट्रक पप्पा के ट्रक को ओव्हरेटेक कर रहा था, तभी एक छोटी लड़की दौड़ती हुई रास्ते के बीच आ गई।

ड्रायवर के कुछ समझ में आने से पहले ही ट्रक का पहिया उसके सर पर से निकल गया। वह ट्रक वाला एक क्षण के लिये भी नहीं रुका, सीधा निकल गया, लेकिन पप्पा के ट्रक के ड्रायवर ने घबरा के ब्रेक लगा दिया।

अचानक आसपास के लोग रास्ते पर आ गये।

ड्रायवर और क्लीनर बेहद घबरा गये। वे पप्पा से बोले

"बाबूजी भागो"

पप्पा बोले "मैं क्यों भागूं! और तुम भी क्यों भागते हो? एक्सिडेंट तो दूसरे ट्रक का हुआ है।"

लेकिन जवाब देने के लिये कोई रुका ही नहीं।

देखते-देखते ट्रक के चारों ओर गुस्से से चीखते चिल्लाते लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई।

पप्पा ट्रक से उतरे और उन्हें समझाने की कोशिश करने लगे।

लेकिन सामने बच्ची की कुचली हुई लाश पड़ी थी। लोग कुछ सुनने समझने की मन:स्थिती में नहीं थे।

जमाव हिंसक होने लगा। कहीं से लाठीयाँ लेकर भी लोग आ गये।

पप्पा जान बचाने के लिये ट्रक के नीचे घुस गये।

भीड़ इतनी बेकाबू हो गई थी कि पप्पा को लगा वे अब उनकी जान ले कर, और फिर ट्रक को जला कर ही शांत होंगे।

उसी समय अचानक ना जाने कहाँ से भगवान के दूत की तरह एक पुलिस की जीप आ गई। उस जीप में नाशिक के एसपी चांदोरकर साहब थे। 

वे किसी दूसरे ही काम से वहाँ से गुजर रहे थे।

उन्होंने जोर का आवाज चढ़ाया और डाँट डपट कर भीड़ को पीछे हटाया, और पप्पा को ट्रक के नीचे से बाहर निकाला।

पप्पा ने उन्हें जल्दी-जल्दी मराठी में सारे हादसे का किस्सा बताया और उन्होंने तुरंत उनकी बातों पर विश्वास भी कर लिया।

पप्पा को उन्होंने अपने साथ जीप में बिठाया और नाशिक ले गये।

साथ ही कुछ गाँव वाले भी थे। सीधे थाने जा कर सबके बयान लिये गये। लोग इस बात की कसम खा रहे थे, कि उन्होंने खुद अपनी आँखों से देखा कि ट्रक पप्पा ही चला रहे थे।

पप्पा का बयान भी लिया गया।

फिर चांदोरकर साहब बोले “ लड़की की मौत हुई है । जब तक ड्रायवर और क्लीनर पकड़े नहीं जाते आपको नाशिक छोड़ कर जाने की अनुमति नहीं है। लेकिन आप पर और कोई बंधन नहीं है,आराम से नाशिक घूमिए, बस शहर छोड़ कर मत जाइए।”

फिर उन्होंने एक हैरत अंगेज बात की। एक कॉन्स्टेबल को बुलाया और कहा कि इन साहब को मेरे घर ले जाइए। मिसेस से कहिए कि इनके नहाने, खाने का प्रबंध करें।

पप्पा चांदोरकर साहब की भलमनसाहत देख कर अवाक रह गये।

कॉन्स्टेबल के साथ उनके घर गये।

नहा धोकर, बढ़िया नाश्ता करके, मिसेस चांदोरकर की सलाह से नाशिक की दर्शनीय जगहें देखीं।

शाम को जब थाने पहुँचे तो ये देख कर बेहद प्रभावित हो गये कि पुलिस उनके ट्रक के ड्रायवर और क्लीनर को पकड़ लाई थी।

वे किसी गाड़ी में लिफ्ट ले कर मध्यप्रदेश बॉर्डर तक पहुँच गये थे।

चांदोरकर साहब ने पुलिस की जीप मंगवाई और ड्रायवर को ताकीद दी कि पप्पा को MP बॉर्डर पर ले जा कर ग्वालियर जाने वालि किसी बस में बैठा दे।

आज इस घटना को ६०-६२ साल हो गये, लेकिन आज भी पप्पा नाशिक के असामान्य पुलिस अफसर चांदोरकर और उनकी असामान्य अच्छाई को बड़ी इज़्ज़त से याद करते हैं।

पाँच छ: महीने बाद पप्पा को नाशिक के कोर्ट से समन आया। उनकी नाशिक में पेशी थी। फिर ट्रक का ड्रायवर भी उनसे मिलने आया। अपने बाल बच्चों की दुहाई देने लगा।

हालांकि उसकी गाड़ी से अपघात नहीं हुआ था, लेकिन गलती उसकी भी थी।

पप्पा की गवाही से वह बाइज्जत बरी हो गया।

इस पर वह इतना खुश हुआ कि बेहद आग्रह कर वहीं से उन्हें मुंबई ले गया और खुद के खर्चे से तीन चार दिन तक मुंबई घुमाई। पप्पा को जेब में हाथ तक नहीं डालने दिया और फिर वापस सकुशल ग्वालियर ला कर छोड़ा।

                           अगली बार एक और अपघात...

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