हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है ना-तजरबा-कारी से वाइज़ की ये हैं बातें इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है (ना-तजरबा-कारी= अनुभव हीनता, वाइज= धर्म गुरू) उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है... Continue Reading →
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है (ख़लिश = चुभन, वेदना) रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे हर... Continue Reading →
हम हैं मता ए कूचा ओ बाज़ार की तरह
आज पेश कर रही हूँ फिल्म दस्तक का गीत हम हैं मता ए कूचा ओ बाज़ार की तरह हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह (मता= वस्तु , कूचा-ओ- बाज़ार= गली और बाज़ार) वो तो कहीं है और मगर दिल के आस-पास फिरती है कोई शय निगह-ए-यार की तरह... Continue Reading →