भूलभुलैया

जैसे ज़ीना चढ़ते चढ़ते बीच की सीढ़ी हो जाए गुम, जैसे कुछ भूला ना हो,पर याद आए सब थोड़ा कम। रोज का रस्ता हो कर भी जब कुछ ना लगे पहचाना सा, अपना ही चेहरा दर्पण में लगे बड़ा अनजाना सा। चेहरा जो आंखो के आगे, उस चेहरे को नाम ना हो, और जुबां पर... Continue Reading →

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