झबरीले

सोफे पे, गद्दे पर, कुर्सी के ऊपर और टेबल के नीचे कपड़ों पे चिपके और पर्दों से लटके, प्याजों की डलिया में गमलों में, बगिया में हर लम्हा झड़ते हवाओं में उड़ते घर के हर कोने में बाल पड़े हैं। मुश्किल हटाना है दुनियांँ भर के झाडू कोशिशें कर कर के थक कर पड़े हैं।... Continue Reading →

मेरे पुरुष मित्रों के नाम

मेरी सहेलियां ही बेहतर है तुमसे । अच्छी लगती है बातें तुम्हारी एक अलग दिशा एक नज़रिया नया । लेकिन सुन लेते हो तुम न जाने क्या उन लफ़्ज़ों के बीच, कुछ है ही नहीं जहां ये कसरत करते रहना पड़ता है तुम्हारे साथ मुझे हमेशा कि कहीं तुम कोई मतलब ना निकाल लो मेरी बातों, हँसी... Continue Reading →

दोस्ताना- ४

             शेरी कई बार मुझे विश्वास होने लगता है कि सारे रिश्ते-नाते, छोटी-मोटी घटनाएँ ये किसी तयशुदा बड़ी सी दैवी योजना का हिस्सा होती हैं। जब भी मैं पीछे मुड़कर कोई घटनाक्रम देखती हूँ, तब इस बात का एहसास अधिक होता है कि अरे!! सब बातें ऐसे हुईं मानों पहले... Continue Reading →

दोस्ताना -२

रॉकी सुबोध का प्राणी प्रेम कम होने का नाम नहीं ले रहा था। आखिर एक कुत्ता लाने का विचार किया गया। पप्पा के किसी परिचित की ऑलसेशियन कुतिया को पिल्ले हुए थे। पिल्लों का पिता देसी था, लेकिन बच्चे देखने में बड़े खूबसूरत थे। हम तो देखते ही फिदा हो गये। और इस तरह रॉकी... Continue Reading →

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