ह्रदय की बात

  तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन। चिर विषाद विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर वन की मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन। जहाँ मरू–ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्हीं... Continue Reading →

Website Built with WordPress.com.

Up ↑