जेरूसलम डायरी -4

ऐ खुदा माफ कर उन्हें  वो नहीं जानते वो क्या कर रहे हैं। सलीब पर कांटों का ताज पहने  राजाओं के राजा ने आंखे उठा कर याचना की थी। कितना दीन होना पड़ता है बड़ा होने के लिए कितना झुकना पड़ता है ऊपर उठने के लिए। सजा देने का तो दूर माफ करने का अधिकार भी... Continue Reading →

जेरूसलम डायरी-1

जेरूसलम की संकरी गली में सामानों और लोगों से ठसाठस भरे बाज़ार के बीच एक मोड़ पर रुक कर उसने उँगली दिखाई। यहीं, इसी जगह पर गिरा था मसीहा। बोझ जब हद से अधिक बढ़ गया, ज़ख्म रिसने लगे, पैर लडखडाने लगे। यहीं, इसी जगह गिरा था मसीहा। दुकानदारों और खरीददारों की भीड़ में रौशनियों... Continue Reading →

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