मेरे घर की हर चीज में मेरा ही प्रतिबिम्ब दिखता है कहता है मेरा बेटा! सच भी है। इस घर की हर छोटी बड़ी चीज में, दीवार पर लटकी तस्वीर से लेकर गमले में लगे मोगरे तक, पूजा घर के भगवान से ले कर, खिड़की पर टँगी कांच की घण्टियों तक, मानो हर बात में... Continue Reading →
हंगामा है क्यों बरपा
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है डाका तो नहीं डाला चोरी तो नहीं की है ना-तजरबा-कारी से वाइज़ की ये हैं बातें इस रंग को क्या जाने पूछो तो कभी पी है (ना-तजरबा-कारी= अनुभव हीनता, वाइज= धर्म गुरू) उस मय से नहीं मतलब दिल जिस से है... Continue Reading →
सविनय अनुरोध
किसी ने कहा “तुम्हें देख कर लगता ही नहीं कि तुम इतने बड़े बड़े लड़कों की माँ हो।” इसे मैं अपनी तारीफ समझूँ या अपमान? औरतों की उम्र नहीं पूछनी चाहिए। क्यों भला? क्या ये भी मासिक की तरह कोई लज्जास्पद विषय है कि चाहे वो हर महीने झेलना पड़े पर उसकी खुलेआम चर्चा नहीं... Continue Reading →
स्वतंत्र अभिव्यक्ति
छोटी बड़ी खुशियाँ, आते जाते गम परेशानियाँ, राहतें, चाहतें, सपने दोस्त, दुश्मन, पराए, अपने सब हैं मेरे साथ हमेशा। मेरी यादों में रचे बसे। ये यादें हीं तो मैं हूँ मेरा ही हिस्सा हैं ये यादें। वो कि जब सहेली,चाय और बातों के साथ ना जाने कितने पकौड़े ना जाने कहाँ गये थे। वो कि... Continue Reading →
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं
उज़्र आने में भी है और बुलाते भी नहीं बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात बताते भी नहीं (उज्र = संकोच, झिझक, बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात = मुलाकात बंद करने की वजह) मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं (मुन्तजिर = इंतज़ार में , दम-ए-रुखसत = अंतिम समय) सर उठाओ तो... Continue Reading →
जाने भी दो
एक ख्याल था जो शाम से ज़हन में चल रहा था बड़ी बेसब्री से कविता बनने को मचल रहा था सोचा था कि बस घर पहुंचते ही लिख डालूंगी हाथों से छूट जाए इसके पहले किसी शक्ल में ढालूंगी घर पहुंचते ही शुरू हो गया कपड़े, बर्तन, खाने का फेर और कविता बेचारी हो गई दरवाजे... Continue Reading →
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है
कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबां होती है कौन कहता है मुहब्बत की ज़ुबाँ होती है ये हक़ीक़त तो निगाहों से बयाँ होती है वो न आये तो सताती है ख़लिश सी दिल को वो जो आये तो ख़लिश और जवाँ होती है (ख़लिश = चुभन, वेदना) रूह को शाद करे, दिल को जो पुरनूर करे हर... Continue Reading →
हम हैं मता ए कूचा ओ बाज़ार की तरह
आज पेश कर रही हूँ फिल्म दस्तक का गीत हम हैं मता ए कूचा ओ बाज़ार की तरह हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह (मता= वस्तु , कूचा-ओ- बाज़ार= गली और बाज़ार) वो तो कहीं है और मगर दिल के आस-पास फिरती है कोई शय निगह-ए-यार की तरह... Continue Reading →
मुलाकात
कल मिला पर कुछ नहीं कहा उसने। मौसम, बारिश, दुनियादारी सबकी बातें हुईं फिर मुस्कुरा कर , हाथ हिला कर अपनी अपनी राह चले हम। पर उसकी यहाँ से वहाँ तक फैली मुस्कुराहट, ना उसकी आँखों तक पहुँची ना मेरे दिल तक। बज रही है उसकी खामोशी किसी अनावृत्त सत्य की तरह अब भी मेरे कानों... Continue Reading →
दोस्ताना 6
साशा दिन पर दिन शैतान होती जा रही थी। उसे मैं कुछ सिखाने की कोशिश करती, तो वो भाग कर कहीं झाड़ियों में जा छुपती। गंदी तो इतनी अधिक होती, कि साफ करना भी रोज का काम हो गया था। उसे बस पूरे दिन खेलना और दौड़ना अच्छा लगता। शेरी भौंक-भौंक कर उसे अनुशासित करने... Continue Reading →