तुम्हारी तरह बस तुम ही हो लेकिन कभी कभी तुम खुद से भी कितने अलग नज़र आते हो.. वैसे ही जैसे आकाश का नीला पन बहुत अलग लगता है नीले रंग से कभी कभी....
मेनोपॉज़
बात बेबात हो जाती हैंआँखे यूँ ही नमना जाने इन दिनों क्योंज़ब्त बहुत है कम।हम सबके और सबहमारे दुश्मन बन जाते हैं।गुस्सा इतना आता हैहम खुद से डर जाते हैंउम्मीदों के पहाड़ को अबतो मुश्किल हो गया ढोनापहले सब कर लेते थेपर अब आ जाता है रोनाक्या समझाएँ खुद कोखुद से थक जाते हैं हमना... Continue Reading →
मैंने कब कहा
मैंने कब कहा मुझे सहर करमेरी रौशनी हो जहान मेंशाहीन जो हैं उड़ा करेंमेरा दिल नहीं है उड़ान मेंलगे झूमने सुन महफिलेंवो क़शिश नहीं मेरी तान मेंमुझे बहुत कुछ की नहीं हवसहै वही बहुत जो है हाथ मेंमुझे शोर ओ शोहरत से उज्र हैमैं खुश हूँ ख़ल्वत गाह मेंमैं बनूँ शजर कोई बैठ लेदम भर को... Continue Reading →
Jet lag
ये आज की सुबह थी या कल की शाम हैउठ के चाय पी लें या हमको अब सो जाना था।आज खा चुके हैं या मान लें कि कल खाई थी या फिर से खा लें वो दवा जिसको रोज खाना था।कुछ ऐसी अजब कूद फांद कर रहा है समयघड़ी भी हैरान है के ये अलार्म कब बजाना था।कुछ यूँ उलझ रहा है सिलसिला... Continue Reading →
बंद करो ये बंद करना
आए दिन के बंद से कुछ हासिल नहीं होते दिखता कोई एक दिन देख लीजिए चालू भी आयोजित कर। उसे लगाएं दो जूते और जोत दीजिए कोल्हू में जो भी निठल्ला बिना काम का खाली बैठा आए नज़र। कब तक चक्के जाम करेंगे, ठप्प करेंगे काम काज किसी एक दिन चलने भी दें सारे चक्के आठ प्रहर।... Continue Reading →
मेरे पुरुष मित्रों के नाम
मेरी सहेलियां ही बेहतर है तुमसे । अच्छी लगती है बातें तुम्हारी एक अलग दिशा एक नज़रिया नया । लेकिन सुन लेते हो तुम न जाने क्या उन लफ़्ज़ों के बीच, कुछ है ही नहीं जहां ये कसरत करते रहना पड़ता है तुम्हारे साथ मुझे हमेशा कि कहीं तुम कोई मतलब ना निकाल लो मेरी बातों, हँसी... Continue Reading →
ह्रदय की बात
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन। विकल हो कर नित्य चंचल खोजती जब नींद के पल चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन। चिर विषाद विलीन मन की, इस व्यथा के तिमिर वन की मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन। जहाँ मरू–ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती, उन्हीं... Continue Reading →
काश !
काश ! पहनी जा सकतीं कविताएँ और कहानियाँ लिबासों की तरह.. खूबसूरत लफ़्ज़ों की रंगीन कमीजें होती बेलबूटों की तरह बुने होते जिसमें किरदार अलग अलग पोत के बदलती दुप्पट्टे हर दिन रोज़ एक नई कहानी पहन खुद भी बदल जाती मैं। फिर कोई कविता मेरा जिस्म ही बन जाती कभी और तुम कहती कि मुझपे वो जँचती... Continue Reading →
खोल दो दरवाजे़
खोल दो दरवाज़े भीतर थोड़ी हवा तो आए। माना जो घर तुम्हारा है, बेहद हसीन है औरों से ज़्यादा बेहतर है इसका यकीन है लेकिन ना जाने क्यों ये कुछ सोया सा लगता है सब कुछ है मगर कुछ कहीं खोया सा लगता है। लेने लगेंगे साँस परदे थोड़ी हवा तो आए। खोल दो... Continue Reading →
मेरे आध्यात्मिक मौन का अनुवाद
धीरे से एक आँख खोल कर कभी इधर देखती हूँ तो कभी दूसरी खोल कर उधर चारों ओर समाधिस्थ बुद्ध की प्रतिमाओं की तरह निश्चल, ध्यानमग्न बैठे हैं लोग। एक मैं ही हूँ इनमें शायद जिसे प्रकाश की कोई किरण दिखती ही नहीं। फिर आँख के एक कोने से दिखती है मुझे हलचल हल्की सी।... Continue Reading →