बिल्ली विश्वविद्यालय (9)

यूँ ही ब्रश उठा कर पहाडों को पीला रंग दूँ गेरूआ रंग दूँ घाँस को और आसमान सुनहरा कर दूँ। पैरों तले रख दूँ आँधियाँ या समुंदर को छत कर लूँ। बालों में फूलों कि तरह चाँद और सूरज लगा लूँ या फिर दोपहर का आँचल सितारों से भर दूँ। जब कुदरत कर सकती है... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय(8)

एक साज़ बिल्लियाना घुरघुराना,पर्रपर्राना ऐसे नीरस शब्द उस घटना को व्यक्त करने में पूरी तरह नाकाम हैं जब बिल्ली आपके सिरहाने आ कर आपके ही तकिए पर सर रख दे, या फिर आपके सीने पर संतुलित कर खुद को आँखे बन्द कर ले। या जब आप कोई किताब ले हाथ में सोफे पर पसरे हों... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय (7)

शेर की मौसी शहद से भरी प्यालियों सी बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखे, नर्म मखमल सा बदन मासूम चेहरा। ईश्वर की बनाई सबसे खूबसूरत रचना! बड़े शाही अंदाज मे आपके सामने है। आप खुद को रोक नाहीं पाते। हाथ बढा कर छू लेते हैं उठा कर भींच लेना चाहते हैं गोद में। आप नजरअंदाज कर रहे... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय(6)

झंडे सी तनी है ऊपर को, या दाएँ-बाएँ हिलती है, हौले हौले लहराती है, हर हलचल कुछ तो कहती है। हल्का सा इशारा पूँछ का ही हर बात बयाँ कर जाता है, ऑरी को हमारी बोलने की थोड़ी भी जरूरत लगती नहीं। लगता है देख के बिल्ली को है शायर ने ये बात कही, है इल्म की... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय (5)

अक्सर देखा है मैंने सामने किसी बिजली के तार पर,या खिड़की की मुंडेर पर बैठे कबूतर को अपलक तकती बिल्ली को। उस समय किसी महान योगी सी वो इतनी एकाग्रता से कबूतर समाधि में लीन होती है कि सारे संसार में सिर्फ वो और कबूतर बस, इतना ही बाकी रह जाता है। ये भी देखा... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय (4)

झब्बू बिल्कल नहीं सुनता ज़रा भी नहीं। अक्सर तो वो इसलिए नहीं सुनता कि वो कोई कुत्ता नहीं है। कभी इसलिए नहीं सुनता क्योंकि वो बिल्ली है। कभी उसका मन नहीं होता। और कभी कभी उसका मन होता भी है... पर वो इसलिए नहीं सुनता कि वो नहीं चाहता कि किसी को ये गलतफहमी हो... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय (3)

सुबह उठते ही उसने पहले पूँछ फुला कर मुझसे लाड़ करवाया। खुश हो कर सारे घर का दौड़ कर चक्कर लगाया। अलग अलग आसनों में बदन तानते हुए फिर खाने की तरफ मोर्चा घुमाया। खाना खा कर जीभ चटकारते हुए बड़ी एकाग्रता से उसने पहले अपने नाखूनों की धार तेज़ की। फिर किसी सौंदर्य विशेषज्ञ... Continue Reading →

बिल्ली विश्व विद्यालय (2)

जंगल सफारी में घंटों जीप में बैठ शेर का इंतजार करना तपस्या करने जैसा है। यदि  वो प्रसन्न हो जाए तो हो जाते हैं दर्शन। पर शेर दिखे या ना दिखे, कहानियाँ तो बन हो जाती हैं। कैसे वो उठा,कैसे बैठा और कैसे उसने पार किया रास्ता। या फिर हर जगह थे उसके कदमों के... Continue Reading →

बिल्ली विश्वविद्यालय  (1)

कितनी देर देख रही हूँ... वो बैठी है समाधिस्थ बंद आँखों से देखती। होती है कहीं कोई हल्की सी हलचल , कभी कोई अदृश्य सरसराहट.. कान एक नाजूक सा इशारा करते हैं उस ओर, बताने के लिए कि वो पूरी तरह सतर्क है हर पल, हर क्षण। किसी निपुण योग गुरू सी वो सोई भी... Continue Reading →

Website Built with WordPress.com.

Up ↑