जिकडे तिकडे कबीर शाळेत असताना तिसरी-चौथीच्या हिन्दीच्या पुस्तकात ’कबीरदास की साखी’ नावाचा धडा होता, त्यात पहिल्यांदा भेटले कबीरदास. दोन-दोन ओळींच्या सरळ,सोप्या कविता. तुलसीदास,रैदास ,रहीमादिंच्या अशा दोन ओळींच्या कवितेला दोहा म्हणायचे, पण कबीरच्या दोन ओळींच्या कवितेला मात्र साखी म्हणायचे, असा सादा सरळ हिशोब मी लक्षात ठेवला होता. दोहे कुणाचेही असो, त्यांची गंमत अशी होती कि पटकन... Continue Reading →
आईन्स्टाईन
आईंस्टाईन के जाने की कोई वजह ही नहीं थी। सच तो ये है कि उसके आने की वजह भी कभी मेरी समझ में नहीं आई। अच्छी भली सफेद, खुबसूरत बिल्ली, परी थी हमारी ज़िंदगी में, वो अचानक ही चल बसी। और फिर ये महाशय मानों कतार में खड़े इंतज़ार... Continue Reading →
पोरटेज
पोरटेज बहुत साल पहले, भोपाल की गॅस त्रासदी के समय सबसे पहली बार यह विचार मन में आया था। आधी रात को जब किसी को कुछ भी पता नहीं था, कि क्या हुआ, अचानक भगदड़ मच गई। लोग खाँसने लगे, बंद कमरों में दम घुटने लगा। दिसंबर की जानलेवा ठंडी रात में लोग... Continue Reading →
बनते बनते
ना जाने कहाँ से अचानक किसी सधे हुए शिकारी बिल्ले की तरह, एक विचार झपटा। शब्दों के चूहों में भगदड़ मच गई। कुछ को उसने उठाया, कुछ को पटका, किसी के साथ कुछ देर खेला, किसी को तेज़ नाखूनों से खरोंच कर लहुलुहान कर दिया। और फिर बिना कुछ लिए, बिना कुछ किए, जिस तरह... Continue Reading →