मी...मला... माझं... कबीराच्या साखीमधे सारखच त्यांच नाव येतं. बहुतेक कवि कवितेच्या शेवटच्या कडव्यात स्वत:च नाव घालतात. चित्रकाराने चित्र पूर्ण झाल्यावर चित्रावर सही करावी तसेच. पण किती तरी वेळा कबीर शेवटी सही करत नाही, तर स्वत:ला उद्देशून बोलल्यासारखेच बोलतात. कबीरा गरब न कीजिये, कबहूं न हंसिये कोय। अबहूं नाव समुंद्र में, का जाने का होय॥ कबीरा... Continue Reading →
शादी
( Jacques Prevert की फ्रेंच कविता ‘pour toi mon Amour’ से रुपांतरित) कोई बहुत पुरानी नहीं बस, कुछ ही दिन पहले की बात है । हम पहली बार मिले थे। तुमने दिये थे फूल मुझे, और कहा था... तुम्हारे लिये प्रिये कि तुम फूलों सी नाज़ुक हो। कोई बहुत पुरानी नहीं... Continue Reading →
कोयला भया ना राख
पत्र का आखरी भाग अवनि ने फिर से पढ़ा। “शादी में तुम सभी आ पाते तो अच्छा होता। प्रिया मौसी तो तुम्हारे अकेले आने से बहुत दुखी होगी, उसके घर की यह पहली ही शादी है। उस पर संजू ने लगभग चालीस लड़कियाँ देख कर ये लड़की पसंद की है। लेकिन क्या करें? अब परीक्षा... Continue Reading →
गमन
पप्पा इतने अधिक अस्तित्वमय थे,इतने अधिक ज़िंदा थे कि जाने के बाद भी बहुत सारे रह गये। पहली बार जब उनके कॅन्सर के बार में पता चला, तब से ले कर उनके जाने तक अलग-अलग समय पर अलग-अलग मन:स्थितियों में ये चार कविताएँ लिखीं थी। पहली तब, जब उनका जाना तय है, ये पता... Continue Reading →
चलो,कोई तो है !
चलो,कोई तो है ! शास्त्रीजी सारे घर के दो चक्कर लगा चुके थे। सुमन किचन में काम कर रही थी। आदित्य दाढ़ी बना रहा था। बच्चे स्कूल के लिए तैयार हो रहे थे। शास्त्रीजी ने सोचा कुछ काम किया जाए। लेकिन क्या? जब तक पत्नी जीवित थी, तब तक तो उन्हें यही लगता था,... Continue Reading →
बुढ़िया और चोर
बच्चे जब छोटे थे, तब उनके लिए बहुत सी कविताएँ और कहानियाँ लिखीं थी। कई कहानियों के हीरो वे ही होते, और बहुत सी कविताओं में उनका नाम होता। उन्हें बहुत मज़ा आता। बार-बार अपनी ही कहानी सुनना चाहते। खुद की कविताएँ भी उन्हें ज़बानी य़ाद थीं। तब की ही कुछ कविताएँ, जो उन्हें बेहद... Continue Reading →
रोने से औेर….
रोने से और........ बहुत दिनों के बाद सुबह सुबह सैर करने निकली। ठण्ड की वजह से रास्तों पर भीड़ कम थी। पार्क के सामने से गुज़र रही थी तो जोर ज़ोर से हा हा ही ही हो हो की आवाजें सुनाई दीं। कुछ देर रुक कर देखा । बहुत से अधेड़ उम्र के... Continue Reading →
लोग भूल जाते हैं
सुबह सवरे मूँह अंधेरे हर दिन उठना, चुप-चुप गुप-चुप हौले-हौले बेआवाज पका कर खाना डिब्बे भरना किसकी खातिर ? इसकी उसकी फरमाईशों को पूरा करना दिन भर खपना, फिर भी डरना, इसके उसके ताने सुनना किसकी खातिर? इसकी जल्दी उसकी जल्दी इसकी जरूरत उसकी जरूरत बाकी सबकी भागदौड़ में, खुद को सबसे पीछे धरना किसकी... Continue Reading →
सतह के नीचे
जब हॉस्पिटल में काम करती थी, तब लोग आ कर मुझे अपनी निजी जिंदगी की जाने क्या क्या बातें बताते। मेरी रातों की नींद उड़ जाती। फिर लगता , कि ये तो शायद बताने लायक था, लेकिन इसके अलावा भी जाने क्या-क्या होगा हर एक की ज़िंदगी में, जो अब कभी भी किसी को भी... Continue Reading →
तोहफा
तोहफा ट्रेन में मिली थी मुझे वो। दुबली-पतली, छोटी बच्ची जैसी, लम्बी चोटी वाली सरदारनी। नाम था बीबा। उसका नाम बीबा है ,ये मुझे ही नहीं, टिकिट चेकर, आसपास से निकलने वाले यात्री, जिस टॅक्सी से वो लोग स्टेशन आए होंगे, उसका ड्रायवर, यहाँ तक कि, उनका सामान उठाने वाले कुली को भी पता... Continue Reading →