ना जाने कब ,किसने, बस यूँ ही कह दिया कि ये जीवन क्षणभंगुर है । तब से इस बात पर सारी मानव जाति आँख मूंद कर विश्वास करती चली आ रही है । अनगिनत पल, दिन, महीने, साल जी- जी के घिस गए । जीते-जीते पुराने हो चुके लोग, जर्जर अवस्था में ,इसी डर... Continue Reading →
बाप रे बाप…८
जैसे तैसे गणित और विज्ञान लेकर पप्पा मॅट्रिक पास हो गये । पढ़ने के लिये बहुत समय नहीं मिलता था, और कोई खास रुचि भी नहीं थी। उन्होंने सोचा कि इंटर में कॉमर्स ले लिया जाए, कम पढ़ना पड़ेगा। और वैसे भी अब तक पढ़े विषयों में कुछ भी आता जाता नहीं था। कॉमर्स लेने... Continue Reading →
बाप रे बाप…७
पप्पा की आई को सिलाई का शौक था। वे खुद मुंबई जा कर सिंगर की एक पैर मशीन खरीद कर लाईं थीं । उस समय पप्पा की उम्र पांच -छ: साल रही होगी। वो भी माँ के साथ मशीन खरीदने मुंबई गये थे। साथ एक बड़ी सी लोहे की कैंची भी थी। वह मशीन और... Continue Reading →
बाप रे बाप…६
६ पप्पा के घर के तीन नौकरों का जिक्र अक्सर अभी भी कोई ना कोई करता रहता है। एक लालाराम, जो बेहद ईमानदार था और उम्र भर अभ्यंकरों का वफादार रहा। दूसरा रामाजी, जो अनाथ था और बचपन में ही इनके घर आ गया था। बड़ा होने पर वह काका की दुकान में काम... Continue Reading →
बाप रे बाप… ५
स्कूल अच्छी तरह चालू था ,बस पप्पा कक्षा में कदम भी नहीं रखते थे। सिर्फ खेलने के लिये ही स्कूल जाते। हाँ ,स्कूल के कॅन्टीन में चाय पीने लेकिन रोज ईमानदारी से जाते। उस जमाने में बच्चों की जेब में आमतौर पर पैसे नहीं ही हुआ करते थे । इसलिये शिक्षकों के अलावा शायद ये... Continue Reading →
बाप रे बाप … ४
माँ के जाने के बाद घर का वातावरण अजीब सा हो गया था। हालांकि घर में आजी और काकी थीं, लेकिन आजी बूढ़ी थी। पप्पा की आई और आजोबा की मृत्यु के बाद उनका मन उचट गया था। पूजा पाठ में ही लगी रहती। काकी अपने आप में ही व्यस्त रहती थी। खाना बहुत... Continue Reading →
बाप रे बाप… ३
पप्पा के बचपन में ग्वालियर का वातावरण बिल्कुल अलग था। रोज सुबह सड़कें झाड़ी जाती और भिश्ती मशक लेकर रास्तों पर पानी छिड़कता। दरबार लगते और विशेष अवसरों पर महाराज की सवारी निकलती। शिंदे सरकार का राज्य होने की वजह से स्कूलों में मराठी मीडियम था। पप्पा के यार दोस्त भी सरदारों-सुबेदारों के बेटे थे।... Continue Reading →
बाप रे बाप -२
पप्पा को फिल्म शराबी का एक डायलॉग बेहद पसंद है। उन्हें लगता है मानो वो उनके लिये ही लिखा गया हो। वो डायलॉग कुछ इस तरह था , “ तेरा तारीख को मैं इस दुनिया में आया। आया क्या जनाब, इस दुनिया में फेंक दिया गया।” पप्पा का जन्म १३ मई को बुंदेलखंड के चरखारी... Continue Reading →
कबीर ३
शहनशाह मी हिन्दी मीडियमच्या सरकारी शाळते शिकले. माझ्या वर्गात समाजातल्या सर्वसामान्य वर्गातली मुलं होती. पण त्यात एकही मुलाचे नाव कबीर नव्हते. राम, श्याम, मोहम्मद, देव, भगवान, इब्राहीम … पण कधीही एकही कबीर नाही. मोठं झाल्यावर मात्र काही कबीर सापडले. पण ते सर्वच सामाजातल्या उच्च वर्गातले, उच्च शिक्षित, कलाकार, लेखक असे काहीसे वलयांकित होते. आज विचार... Continue Reading →
बाप रे बाप…१
पप्पा अब नहीं हैं ,ये कहना गलत ही होगा। कोई दिन ऐसा नहीं जाता, जब उनकी कोई ना कोई बात याद ना आई हो। वो बहुत अधिक बातूनी थे। लेकिन उनका खयाल था कि मुझसे उनका कोई मुकाबला नहीं है। उनसे बात करने में मज़ा आता था। वो भी हर बात के मज़े लेते थे।... Continue Reading →