बाप रे बाप…१७

पप्पा को ट्रक में सवारी करने का मानो चस्का लग गया था। उनका कहना है कि ट्रक में बैठ कर, हायवे पर, रात को सफर करने का रोमांच वही समझ सकते हैं, जिन्होंने कभी ट्रक में सामने बैठ कर सफर किया है। जिस तरह उनका ट्रक का सफर बंद नहीं हुआ, उसी तरह उनके जीवन... Continue Reading →

बाप रे बाप …१६

पप्पा बहुत अपघात प्रवण (accident prone) हैं। खुद ही जा कर अपघातों से टकरा जाते हैं। इतने अधिक जानलेवा हादसे उनके साथ हुए हैं, कि मेरा बेटा नील कहता है “मैं तो कई बार मरा होता इतने में।” पहले मैनें सोचा था कि जैसे-जैसे उनकी जीवन कहानी में कोई घटना आएगी, तब उसके बारे में... Continue Reading →

बाप रे बाप… १५

पप्पा हमेशा से ही अति उत्साही हैं। आलस का तो उनमें कहीं नामोंनिशान नहीं है। हर समय कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं। यदि उन्हें किसी बात की सज़ा देनी हो, तो सबसे बढ़िया तरीका ये हो सकता है कि उन्हें घर में एक जगह बैठा कर रखा जाए। हमारे घर पुणे आते, तो... Continue Reading →

बाप रे बाप…१४

बीए में प्रवेश लेते समय सबसे बड़ी समस्या यह थी, कि विषय क्या लिया जाए। जैसे तैसे इंटर पास हो गये थे, लेकिन इस बात का एहसास था ,कि उन्हें एक भी विषय ठीक से नहीं आता। गणित से तो हमेशा की दुश्मनी थी। नौकरी के साथ साथ विज्ञान असंभव था। इंटर में कॉमर्स का... Continue Reading →

बाप रे बाप…१३

बालकृष्ण निर्वीकर पप्पा के बहुत बचपन के मित्र थे। उनके पिता का देहांत उनके बचपन में ही हो गया था। उनकी मृत्यु के बाद पप्पा की माँ ने काका की माँ को घर चलाने में बहुत मदद की थी। जब तक जीवित रहीं, वे किसी न किसी प्रकार से उनकी सहायता करती रहती थीं। माँ... Continue Reading →

बाप रे बाप… १२

भोपाल में पप्पा को सरकारी क्वार्टर मिल गया था। रहने वाले अकेले। फिर क्या था, दोस्तों को इससे बेहतर जगह कहाँ मिलती? जिस किसी को भोपाल आना होता,या जिस किसी को भोपाल में नौकरी मिलती,अपना बोरिया-बिस्तर ले कर ग्वालियर से सीधे पप्पा के घर आ धमकता। पूछने वूछने का तकल्लुफ करने की ना तो कोई... Continue Reading →

बाप रे बाप…११

  पप्पा भोपाल में नौकरी करने लगे थे, लेकिन उनका वहाँ मन नहीं लगता था। सारे यार दोस्त,घर परिवार ग्वालियर में ही था । उम्र भी कम थी। छुट्टी हो या ना हो, मौका मिलते ही बार-बार ग्वालियर भागते। उनकी इस आदत को लेकर उनके RTO श्री चतुर्वेदी बहुत त्रस्त थे। एक बार जब पप्पा... Continue Reading →

बाप रे बाप …१०

स्टेशन से पप्पा सीधे पुराने भोपाल में देवास मोटर्स के गॅरेज नूरमहल पहुँच गये। बड़ा सा आहाता था,जिसमें ढेरों लोग रहते थे। गॅरेज का एकमात्र कमरा उन्हें दे दिया गया। जहाँ उन्होंने अपना सामान यानि एक गद्दा, स्टोव्ह और बॅग जमा लिये। नूरमहल के निवासियों में पप्पा सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे, होशियार और सुसंस्कृत तो थे... Continue Reading →

बाप रे बाप…९

नाना जिस अस्पताल में नौकरी करते थे, वहाँ एक बार डॉ. कोल्हे नामक आरोग्य सचिव दौरे पर पहुँचे। वे पहुँचते ही बहुत नाराज हो गये ,क्योंकि नाना उनका स्वागत करने बाहर नहीं आए थे। अस्पताल के भीतर पहुँचे, तो देखा वे आराम से OPD में बैठे में मरीज देख रहे थे। बाहर भीड़ लगी थी,लेकिन... Continue Reading →

लोटा

‘दिग्विजय सिंग डेव्हनपोर्ट’ यह उनका नाम जितना आकर्षक और रौबदार था, उतने ही सीधे-सादे वो खुद दिखते थे। साँवला रंग, मध्यम कद-काठी, छोटी सी मूँछें, सुनहरी प्रेम का चश्मा, कुछ भी ऐसा नहीं था, जिसे विशेष कहा जा सके। हर रविवार सपरिवार चर्च जाते। रोज सुबह-शाम खाना खाने से पहले बिना चूके प्रार्थना करते। दिग्विजय... Continue Reading →

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