मेरी पहचान

एक पुराना देख के DP
किसी ने भेजा एक अँगूठा। 
और साथ ये भी लिख भेजा,
बड़ी अलग दिखती थीं तब तुम!
अगर तुम्हारा नाम न होता,
हम तुमको पहचान न पाते।

मिली पुरानी एक सहेली,
देख मुझे हैरत से बोली,
कितनी अलग दिखती हो अब तुम!
फेसबुक पर भी नाम अलग है,
अगर रास्ते में दिख जाती,
हम तुमको पहचान न पाते।

जीवन का यह लंबा रस्ता, 
एक सफर से कटता नहीं है।
सालों के इस बियाबान में
लंबे,छोटे कितने सफर थे।
हर एक सफर में अलग थी 
मंजिल,अलग था राही 
चलने की रफ्तार अलग थी
और अलग ही थे हमराही।

लेकिन वो तब की बातें थीं
कुछ न रहीं अब पहले जैसी
बदल गए किरदार भी सारे
रही कहानी ना पहले सी
अपनी माँ की अब मैं माँ हूँ
और अब माँ है मेरी बेटी।
खुद से भी अब मेरा रिश्ता
है बदला सा, दुनियाँ भी
अब मुझको लगती है कुछ छोटी।


मैं भी पहले वाली मैं को 
देख चकित हूँ,
वो भी मुझसे मिल पाती तो
हैरां होती।

आप अगर जो  फिर भी
मिलना चाहें मुझसे ,
बीते कल में मुझे ढूँढना 
है बेमानी।
शक्ल है मुझसे मिलती जुलती,
शायद  अब भी नाम वही है।
लेकिन उसके जैसा मुझमें,
इतना सा भी,कुछ भी नहीं है।

आज यहाँ पर,और इसी पल,
आप जो मुझको देख रहे हैं,
बस मेरी पहचान वही है।

और अगर कल फिर इस मैं
से चाहेंगे मिलना
चाहे जितनी कोशिश कर लें
नहीं मिलेगी।


         स्वाती

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