दूर के ढोल

वो वादी जो धरती पे जन्नत की मूरत है
जहाँ की हर इक  शै बहुत खूबसूरत है
हवाएँ महकती हैं खुशबू ए केसर से
पर्वत सजे से हैं फूलों के जेवर से
झरनों और झीलों में  बर्फीला पानी है
चिनारों  के सीनों में आदिम कहानी है
खुद हाथों से तोड़ के सेब आडू खाऊँ,
बरसों से सपना था कश्मीर जाऊँ।

पहलगाम के हॉटल में कहवा पिलाता था
कमसिन सा वेटर था बहुत बतियाता था।
मैं पूना से आई हूँ उसने सुना जब,
आँखों में सपने भर कहने लगा तब,
अपनी महबूबा को चौपाटी दिखाना है
बेफिक्री से बैठ के भेलपूरी खाना है
समुंदर डल झील से बेहद बड़ा होगा
बंगले की गॅलेरी में बच्चन खड़ा होगा।
शाहरुख का बंगला मन्नत दिखाना है
होती है क्या उसको जन्नत दिखाना है।
एक बार सितारों से हाथ मिलाना है
बचपन से सपना है मुंबई जाना है।

वो मुझ पे, मैं उस पे मन ही मन हँसते थे।
सपनों के जालों में लेकिन जा  फँसते थे।

                            स्वाती
                          20/07/21

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