नकाब

पहले ही आसान नहीं था दुनियाँ के हालात समझना
चेहरों पर चेहरे पहने लोगों के दिल की बात समझना।


असली-नकली चेहरों का हम कर ना पाते थे हिसाब,
और कयामत उस पर के अब पहन लिए सबने नकाब।


देख हर इक चेहरा पहचाना, मुस्कुराने से मिली निजात
लेकिन उलझन और बढ़ी है, समझ ना आए आधी बात।


आधा चेहरा परदे में है, घुटी घुटी आवाजें सारी
अब बेचारी आँखो पर ही टिकी है पूरी जिम्मेदारी।


परदे के पीछे छिप कर ही बात जुबां पर आती है
आँखे होठों से बेहतर हैं सच्ची बात बताती हैं।


                                       स्वाती

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