कब,कैसे

 
पिछले दिन के आगे
फिर अगला दिन,
अगले दिन के आगे
फिर अगला दिन....

लम्हा लम्हा बहता रहता,
इक दिन जाता रोज खिसक।
वो ही उठना,वो ही जीना
वो ही थक कर सो जाना।

रोज रोज के इस चक्के में
घूम घूम कर थक गये जब,
एक दिन नज़र उठा कर देखा
खुद को ना पहचान सके!

वही सुबह और वही दोपहर
वो ही घर और वही सफर
उसी डगर पर चलते चलते
सब कुछ कैसे गया बदल।

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