बाप रे बाप…१७

पप्पा को ट्रक में सवारी करने का मानो चस्का लग गया था। उनका कहना है कि ट्रक में बैठ कर, हायवे पर, रात को सफर करने का रोमांच वही समझ सकते हैं, जिन्होंने कभी ट्रक में सामने बैठ कर सफर किया है।

जिस तरह उनका ट्रक का सफर बंद नहीं हुआ, उसी तरह उनके जीवन में हादसों का सिलसिला भी चलता रहा। जिसकी वजह से उनकी जीवन गाथा अच्छी खासी मसालेदार हो गई है।

आरटीओ ऑफिस में शर्मा जी नामक एक सज्जन काम करते थे।

शर्मा जी हरियाणा के थे। बात बात में 'अमाँ मैं तो पहले ही बोल्या था' कहने की उन्हें आदत थी।

पप्पा को फिर कोई ट्रक वाला मिल गया जो ग्वालियर जा रहा था। ट्रक में बड़े-बड़े ड्रम भरे हुए थे। शर्मा जी भी साथ चलने को तैयार हो गये।

रास्ते में कोई बेचारा गरीब आदमी मिल गया, जिसे ग्वालियर जाना था। उसे भी ट्रक में पीछे बैठा लिया गया।

ट्रक ड्रायवर बहुत डींगे मार रहा था। शायद थोड़ा पिया हुआ भी था।

उसका कहना था कि वह अपने सामने लाल बत्ती देखना ही बिल्कुल पसंद नहीं करता। इसलिये वह सामने दिखने वाली हर गाड़ी को अंधा-धुंद ओव्हरटेक करता।

रात का समय था।

गुना के पास पहुँचे और पप्पा शर्माजी को बताने लगे कि कुछ दिन पहले यहीं कहीं उनका एक्सिडेंट हुआ था।

वे खिड़की से बाहर देख कर अंधेरे में वो जगह पहचानने की कोशिश कर रहे थे। उतने में ट्रक ड्रायवर ने सामने से जा रही किसी गाड़ी को तेजी से ओव्हरटेक किया और ट्रक अचानक रास्ते से नीचे उतर गया।

एक तरफ पहाड़ था और एक तरफ गहरी घाटी।

ट्रक गुलांटी मारता हुआ घाटी में लुढ़कने लगा।

भयानक जोर का आवाज हो रहा था।

जब आवाज शांत हुआ तो पप्पा ने पाया कि वे उल्टे ट्रक में फंसे हैं। जाने कैसे कूद कर वे खिड़की से बाहर निकले।

कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वे चढ़ कर ऊपर रास्ते पर आ गये।

ठंड के दिन थे। मारे सर्दी के हड्डियाँ भी बज रहीं थीं।

जेब में हाथ डाला तो सिगरेट हाथ में आ गई। वहीं एक पत्थर पर बैठ कर सिगरेट सुलगा ली। थोड़ शांत हुए तो नीचे देखा।

ट्रक एक पेड़ से अटक कर रुक गया था, वरना लुढ़कता हुआ गहरी खाई में गिर जाता। पहिये ऊपर थे और उसके हेडलाईट चालू थे।

अचानक पप्पा को शर्माजी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी।

सिगरेट फेंक कर वे फिर नीचे खाई में उतरे। जैसे तैसे खींच कर शर्माजी को खिड़की से बाहर निकाला। ड्रायवर भी चिल्लाने लगा । उसे निकालना मुश्किल था, उसका पैर क्लच में फँस गया था।

पप्पा कहते हैं "मैंने शर्मा जी को बाहर निकाला और वो मुझसे पहले दौड़ लगाते हुए ऊपर चढ़ कर रास्ते पर आ गये।"

शर्माजी तो चेन स्मोकर थे, उन्होंने पहला काम सिगरेट सुलगाने का किया। फिर बोले

" अमाँ मैं तो पहले ही बोल्या था कि ये ड्रायवर सही नहीं है।"

रात के ढाई बज रहे थे। गिरने से पप्पा की घड़ी बंद हो गई थी।

फिर इन्होंने रास्ते पर खड़े हो कर कुछ गाड़ियाँ रोकी।

लोगों ने टॉर्च लिये, गाड़ियों के हेडलाईट खाई की तरफ डाले और बाकियों को ढूँढना शुरू किया।

एक सरदारजी थे, जिन्होने इस सर्च पार्टी का नेतृत्व शुरू किया।

उन्होंने जा कर ड्रायवर को बाहर निकाला। क्लीनर भी मिल गया। उसे भी काफी चोटें आई थीं।

ट्रक में भरे ड्रम नीचे घाटी में लुढ़क रहे थे। कुछ देर खोजने पर वह आदमी भी मिल गया जो पीछे बैठा था। वह ट्रक के नीचे ही दब गया था। अंधेरे में जैसे तैसे खींच कर उसको बाहर निकाला गया।

जब उसे उठा कर ऊपर ला रहे थे, तब वह बेचारा एक ही बात की रट लगाए था।

उसका एक जूता कहीं गिर गया था। उसे काफी गंभीर चोटें लगीं थीं ,लेकिन अपने जख्मों की अपेक्षा उसे जूते की चिंता अधिक थी।

" भैया, कुछ भी करो, लेकिन मेरा जूता ढूँढ दो।" वह कह रहा था।

सरदारजी बोले "देखो यार, यहाँ ये मर रहा है, लेकिन जान से ज्यादा जूते के लिये रो रहा है।"

कुछ देर में सचमुच उसकी मृत्यु हो गई।

पप्पा छोड़ सभी को बहुत चोटें आई थीं। पप्पा और शर्मा जी किसी परिचित ट्रक वाले के साथ ग्वालियर चल पड़े।

दो दिन बाद पप्पा को मुल्कराज मिले जो उस ट्रक के मालिक थे।

कहने लगे , “अच्छा हुआ जो ये अपघात रात को हुआ। वरना तुम लोग तो डर के मारे ही मर जाते। दिन में यदि तुमने ट्रक की हालत देखी होती तो तुम शर्मा जी को भी निकालने जाने की हिम्मत कतई नहीं करते।”

ट्रक जब गिरा तो एक पेड़ से टकराया। ट्रक के टकराने से वह पेड़ उखड़ गया। पेड़ जमीन पर गिरा लेकिन पूरी तरह उखड़ा नहीं था। कुछ जड़ें जमीन में बाकी थीं।ट्रक भी उसी टूटे पेड़ के सहारे अटका हुआ था।

लेकिन सब कुछ इतना अस्थिर था कि किसी भी क्षण पेड़ और ट्रक दोनों ही खाई में जा सकते थे।

लेकिन किस्मत से इस बार भी पप्पा बाल बाल बच निकले।

अगली बार एक और अपघात...

One thought on “बाप रे बाप…१७

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  1. Kay ekhadya thriller story sarkhe accidents zalet papajina. Kharokhar nashib changle mhanunach wachle. Very thrilling.

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