लोग भूल जाते हैं

सुबह सवरे

मूँह अंधेरे

हर दिन उठना,

चुप-चुप गुप-चुप

हौले-हौले
बेआवाज
पका कर खाना
डिब्बे भरना
किसकी खातिर ?

इसकी उसकी
फरमाईशों को
पूरा करना
दिन भर खपना,
फिर भी डरना,
इसके उसके
ताने सुनना
किसकी खातिर?

इसकी जल्दी
उसकी जल्दी
इसकी जरूरत
उसकी  जरूरत
बाकी सबकी
भागदौड़ में,
खुद को सबसे
पीछे धरना
किसकी खातिर?

इसकी खातिर

उसकी खातिर
मरना जीना
छोड़ो जाना
लोग भूल  जाते हैं……

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Website Built with WordPress.com.

Up ↑